अनिल अंबानी की सारी कंपनियों पे कुल मिला के 172000 करोड़ का कर्ज था इन्होंने सिर्फ इंडियन बैंकों से नहीं बल्कि चाइनीज बैंकों से भी कर्ज लिया था अनिल को अब लगने लगा कि उनके सारे बिजनेस फेलियर के पीछे मुकेश अंबानी का ही हाथ है अनिल को जेल जाने से बचाने के लिए उनकी मां मुकेश से मदद मा मांगती हैं यह अंबानी के लिए एक बहुत बड़ा झटका था लेकिन इकलौता नहीं था क्या यहां कोई अनिल अंबानी की जान लेने की कोशिश कर रहा था।
साल 2008 में अनिल अंबानी दुनिया के छठे सबसे अमीर आदमी थे इनकी वेल्थ 42 बिलियन डॉलर्स थी अपने भाई मुकेश अंबानी से भी ज्यादा लेकिन 16 साल फास्ट फॉरवर्ड करो आज 2024 में अनिल अंबानी कहीं भी स्टैंड नहीं करते कर्जदार इनके पीछे पड़े हैं।
कई सारे कोर्ट केसेस इन पर चल रहे हैं और सेवी(SEBI) ने इनको अब इंडियन मार्केट से बैन कर दिया है 5 सालों के लिए आखिर यह कैसे हुआ इस डाउनफॉल की कहानी के पीछे छिपी है दो भाइयों की ऐसी लड़ाई जिसके बारे में ज्यादा लोग जानते नहीं है एक ऐसी लड़ाई जिसका असर पूरे देश के पॉलिटिकल और फाइनेंशियल सिस्टम पर देखने को मिला है और एक ऐसी लड़ाई जिसमें अलग-अलग पार्टीज के पॉलिटिशियन भी बीच में इवॉल्व हुए हैं ।
मुकेश और अनिल अंबानी के पिता से धीरू भाई अंबानी एक वक्त पर धीरू भाई अंबानी एक गैस स्टेशन के अटेंडेंट होते थे लेकिन 1980 तक आते-आते ये इंडिया के सबसे बड़े बिजनेसमैन में से एक बन गए थे फरवरी 1986 की बात है कि इन्हें एक स्ट्रोक हो गया और इसकी वजह से इनका राइट हैंड पैरालाइज हो गया इसके बाद ही था कि इन्होंने अपने बेटों मुकेश और अनिल को बिजनेस सौंपना शुरू किया मुकेश अंबानी थोड़े इंट्रोवर्ट टाइप के थे तो वो ऑपरेशन संभालते थे।
उनका काम था टाइम और बजट में मेगा प्रोजेक्ट्स को सेटअप करना वहीं दूसरी तरफ अनिल अंबानी थोड़े एक्सट्रोवर्ट थे इसलिए पब्लिक रिलेशंस कॉरपोरेट अफेयर्स सरकार के साथ लॉबिंग और मार्केटिंग संभालना उनका काम था साल 1991 में धीरू भाई ने मुकेश अंबानी को रिलायंस इंडस्ट्रीज का वाइस चेयरमैन बना दिया।आप शायद सोचोगे कि आखिर क्या कारण था कि धीरू भाई मुकेश को ही प्रेफर करते थे अनिल को नहीं इसके पीछे कई कारण थे इनमें से एक पारिवारिक कारण भी था।
- अनिल अंबानी का टीना मुनीम से शादी करने का डिसीजन :
टीना मुनीम बॉलीवुड की एक ग्लैमरस सेलिब्रिटी थी अपने समय की ये पहले मिस इंडिया बनी थी और इनकी पहली फिल्म देश परदेश बड़ी हिट हुई थी इन्हें साल 1980 में मॉडर्न इंडियन वुमेन की तरह देखा जाता था इनके कपड़े उस वक्त के हिसाब से रिवीलिंग माने जाते थे और ये फेमस एक्टर राजेश खन्ना के साथ लिविन में भी रहती थी ।
अनिल अंबानी की इनसे मुलाकात हुई थी एक पार्टी में दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और फैसला किया अनिल ने कि वह शादी करना चाहते हैं लेकिन एक प्रॉब्लम थी एक सोशल हर्डल था बात यह थी कि अंबानी फैमिली एक कंजरवेटिव गुजराती फैमिली थी और किसी भी हालत में टीना को अपनी बहू के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं थे ।
धीरू भाई अंबानी ने इस शादी का बहुत विरोध किया इनफैक्ट इसे तुड़वाने की पूरी कोशिश करी गैस वर्स क्रोनी कैपिटल ज्म एंड द अंबानी इस किताब के पेज नंबर 41 पर देखिए क्या लिखा है धीरू भाई अंबानी ने सरकार के के भीतर अपने क्लाउट का इस्तेमाल किया और टीना पर ईडी की रेड पड़वा दी।
कैवन मैगजीन में 2015 में लिखा गया ये आर्टिकल इस चीज को कंफर्म करता है कि टीना पर रेड पड़ी थी ईडी की लेकिन अपने फादर के ऑब्जेक्शंस के बावजूद अनिल ने कहा कि वो टीना से ही शादी करेंगे अनिल को यह भी पता चला कि ईडी की टीम ने टीना के साथ मिसबिहेव किया था इसी के बाद ही अनिल ने धीरू भाई को धमकी दी कि अगर वो टीना को अपनी बहू के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे तो वो फैमिली छोड़ देंगे पूरा फिल्मी ड्रामा चल रहा था।
यहां पर इसके बाद फैमिली और फ्रेंड्स ने इंटरव्यू किया और धीरू भाई को शादी कराने के लिए राजी किया। फरवरी 1991 में इनकी शादी होती है और टीना मुनीम बन जाती हैं टीना अंबानी दूसरी तरफ मुकेश की कहानी बिल्कुल उल्टी थी मुकेश ने उस लड़की से शादी करी जो उनकी मां को पसंद थी उनकी मां कोकिला बहन ने एक भरत नाट्यम डांस रिसाइट में नीता दलाल को देखा और कुछ इस तरीके से शादी होती है मुकेश और नीता की नीता दलाल नीता अंबानी बन जाती हैं और अब फैमिली में इन्हें असली बहू माना जाने लगता है जबकि टीना को एक आउटसाइडर की तर देखा जाता है ।
धीरू भाई और कोकिला बहन फैमिली के इंपॉर्टेंट डिसीजंस के लिए नीता पर डिपेंडेंट होते हैं और दूसरी तरफ टीना को कोई भी बड़ा रोल नहीं मिलता ऊपर से साल 1994 में एक बड़ी इंटरेस्टिंग चीज होती है संदीप टंडन जो एक आईआरएस ऑफिसर थे जिन्होंने टीना के घर पर ईडी की रेड मारी थी ।
संदीप टंडन अपने सरकारी करियर को छोड़ दिया और रिलायंस इंडस्ट्रीज में शामिल हो गए। उन्होंने रिलायंस में महत्वपूर्ण पदों पर काम किया और मुकेश अंबानी के विश्वासपात्र माने जाते थे।अनिल इससे बहुत चिढ़ जाते हैं कहा जाता है कि मुकेश को ये लगता था कि सिर्फ वही रिलायंस को 21 सेंचुरी में लेकर जा सकते हैं इसका संकेत तब मिला जब रिलायंस ने दूरसंचार क्षेत्र में प्रवेश किया। एक कंपनी जिसका नाम रिलायंस इन्फोकॉम रखा गया, बनाई गई, और न ही अनिल और न ही अनिल के किसी आदमी को इस कंपनी में कोई महत्वपूर्ण भूमिका दी गई।
इस रिलायंस इन्फोकॉम कंपनी की मालिक एक और कंपनी थी, जिसका नाम रिलायंस कम्युनिकेशन इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड था। मुकेश और नीता अंबानी इस कंपनी के 50.55% शेयरधारक थे, और आरआईएल इसके 45% शेयरों का मालिक था। आरआईएल रिलायंस की मुख्य कंपनी थी। इस कंपनी के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक स्वयं मुकेश अंबानी थे। और शीर्ष पदों पर बैठे थे मनोज मोदी, आनंद जैन, और भरत गोयनका, जिन्हें मुकेश के वफादार माना जाता था।
आर आई एल(RIL) रिलायंस की मेन कंपनी थी और इस मेन कंपनी के भी चेयरमैन और मैनेजिंग डाइरेक्टर मुकेश अंबानी खुद थे और टॉप पोसिशन्स पर बैठे थे मनोज मोदी आनंद जैन और भरत गोयनका जैसे लोग जिन्हें मुकेश का लॉयल लिस्ट माना जाता था ।
अनिल अंबानी को ये क्लियर साइन लगा की मुकेश उन्हें साइडलाइन कर रहे हैं और मुकेश उनको बराबर का पार्टनर नहीं मानता इसके साथ साथ अनिल को ये भी लगता था की जो कंपनी में उनका रोल है पॉलिटिशियन ब्यूरोक्रेट्स और मीडिया को मैनेज करना उसको अप्रिशिएट नहीं किया जा रहा था अनिल अंबानी मैनेजर्स को भी सेट करते थे लेकिन वो नाराज थे कि उनसे ज्यादा इंपॉर्टेंस मुकेश अंबानी अपने लॉयलिस्ट को दे रहे थे धीरू भाई अंबानी के जिंदा रहते हुए भी साल 1999 तक दोनों भाइयों के बीच ये बड़ी दरार आ चुकी थी।
रिलायंस समूह दो अलग-अलग भागों में बंट गया था। एक था प्रो-मुकेश समूह और दूसरा प्रो-अनिल समूह। धीरूभाई जानते थे कि वह दोनों भाइयों के लिए फिट नहीं हैं। लेकिन व्यवसाय को विभाजित करने के बजाय, उन्होंने एक अलग रास्ता अपनाया। मार्च 2002 में, उन्होंने अपनी रिलायंस कंपनियों का एक मेगा मर्जर (विलय) घोषित किया।इसमें उन्होंने रिलायंस इंडिया लिमिटेड को रिलायंस पेट्रोलियम के साथ मिला दिया। कहा जाता है कि उनका सोचना था कि रिलायंस समूह में शेयरों का विभाजन असंभव होगा और दोनों भाइयों को एक साथ काम करना पड़ेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
6 जुलाई 2002 को धीरू भाई अंबानी का देहांत होता है इसके बाद मुकेश अंबानी के पास भाइयों के बीच में टेंशंस और बढ़ने लगती हैं अनिल अंबानी को लगता है कि मुकेश आरआईएल(RIL) का इस्तेमाल कर रहे हैं अपने टेलीकॉम वेंचर को फाइनेंस करने के लिए और उससे खुद को और अपने दोस्तों को पर्सनल फायदा पहुंचाने के लिए इसके अलावा नीता अंबानी का रोल भी दी इसके साथ-साथ एक और प्रस्ताव पास हुआ कि वाइस चेयरमैन को चेयरमैन के अंडर काम करना होगा अनिल को इससे समझ आने लगा कि मुकेश अब उनको पूरी तरीके से साइडलाइन करना चाह रहे हैं ।
धीरूभाई के निधन के बाद, अनिल चाहते थे कि उनकी मां, कोकिला बेन, रिलायंस की अध्यक्ष बनें। लेकिन मुकेश ने इसे खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि इससे अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को गलत संदेश जाएगा।
मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह के साथ नजदीकियां मुकेश इससे काफी अनकंफर्ट बल थे धीरू भाई अंबानी भी नेताओं के साथ नजदीकियां रखते थे जैसे कि इंदिरा गांधी के साथ लेकिन वह सभी नेताओं के साथ बनाकर चलते थे।किसी एक पॉलिटिशियन को ज्यादा फेवर नहीं करते थे लेकिन अनिल अंबानी समाजवादी पार्टी से ज्यादा ही नजदीक आ रहे थे।
जून 2004 में उत्तर प्रदेश से एक इंडिपेंडेंट कैंडिडेट के रूप में राज्यसभा के लिए नॉमिनेशन फाइल किया जाता है अनिल अंबानी के द्वारा और अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव की मदद से वो जीत भी जाते हैं ।
इसका कारण था कि कांग्रेस की सरकार उस वक्त सेंटर में नई-नई चुनकर आई थी और समाजवादी पार्टी उस वक्त कांग्रेस की मेन राइवल्स में से एक थी आज की तरह नहीं आज दोनों ही एक दूसरे की अलाइज हैं लेकिन उस वक्त काफी अपोजिशन में रहती थी ये दोनों पार्टीज एक दूसरे के मुकेश अंबानी को लगा कि ये रिलायंस के बिजनेस इंटरेस्ट के लिए अच्छा नहीं है कि एक अपोजिशन पार्टी के साथ अनिल अंबानी इतने नजदीक हो रहे हैं तो यह कांग्रेस पार्टी को पसंद नहीं आएगा।
इसके अलावा जब अनिल अंबानी ने राज्यसभा के लिए अपना फॉर्म भरा था तो उनको अपनी और अपनी पत्नी की वेल्थ डिक्लेयर करनी पड़ी और मुकेश इस चीज से भी नाखुश थे कि अब पब्लिकली सबको पता था इनके पास कितना पैसा है। एक तीसरा कारण भी था यहां पर मुकेश अनिल के पावर जनरेशन प्रोजेक्ट से बड़े नाखुश थे।
अनिल अंबानी ने उत्तर प्रदेश के दादरी में गैस बेस्ड इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट शुरू करने की घोषणा करी थी इसके लिए उन्होंने कहा था जो गैस आएगी वो कृष्ण गोदावरी बेसिन में जो गैस डिस्कवरीज हुई है वहां से आएगी मुकेश का ये मानना था कि अनिल ने इस प्रोजेक्ट को रिलायंस समूह पर थोपा था क्योंकि वह मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह को खुश करना चाहते थे। मुकेश को लगता था कि इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य व्यावसायिक नहीं था, बल्कि राजनीतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए इसे प्राथमिकता दी गई थी, और इसका कंपनी के दीर्घकालिक हितों से कोई लेना-देना नहीं था।
इस पॉइंट तक आते-आते दोनों भाइयों के बीच में जो रिश्ते थे वो ब्रेकिंग पॉइंट तक पहुंच चुके थे टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक फ्रंट पेज रिपोर्ट में कहा कि एक बड़े बिजनेस ग्रुप के दो भाइयों के बीच में दरार आ गई है उस वक्त ज्यादातर अखबारों में हिम्मत होती थी डेरिंग खबरें छापने की आज की तरह नहीं जब सारे गोदी मीडिया बने बैठे हैं ।
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